प्रश्न : प्रिय गुरूजी, रूद्र पूजा का असली अर्थ क्या है और इसकी क्या महत्ता है ? और इससे लोगों और जगह पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
प्रश्न : प्रिय गुरूजी, रूद्र पूजा का असली अर्थ क्या है और इसकी क्या महत्ता है ? और इससे लोगों और जगह पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
श्री श्री रविशंकर : रुद्राभिषेक एक बहुत प्राचीन मंत्रोच्चारण विधि है जो आकाश से आई है, जब पहले के समय में ऋषि मुनि ध्यान में बैठते थे, वे सुनते थे और जो वे सुनते थे, वह लोगों को बताते थे| रुद्राभिषेक सकारात्मक ऊर्जा को बढाता है और नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करती है, रुद्राभिषेक के बारे में बहुत कुछ कहा गया है |
जब रुद्राभिषेक होता है तब प्रकृति फलती-फूलती है, प्रसन्न होती है| मुख्य बात उस स्पंदन व उस लहर की है, अगर आप मुझे पूछेंगे कि क्या मुझे सब मन्त्रों के अर्थ पता हैं, तो मैं कहूँगा कि नहीं, मुझे भी नहीं पता| इन मन्त्रों की एक सपंदन, एक लय है जो प्रमुख है |
इसमें २ भाग हैं, पहला है जिसमें है "नमो, नमो, नमो.."
मन का अर्थ है मस्तिष्क, अंग्रेजी का शब्द mind संस्कृत के शब्द मन से आया है, नम का उल्टा है मन| जब मन अपने स्रोत की ओर जाता है तब उसे नम कहते हैं| जब मस्तिष्क बाहर की दुनिया की ओर जाता है तब उसे मन कहते हैं| तो नम अर्थात मन का अपने स्रोत की ओर जाना |
जब यह अपने स्रोत की ओर जाता है तब वहां क्या मिलता है? कि सब कुछ एक ही आत्मा से बना है |
अब वैज्ञानिक क्या कहते हैं, ईश्वर तत्व - जिस से सब बना है| हजारों साल पूर्व ऋषियों ने भी यही कहा था कि सब कुछ एक से बना है जिसे ब्रह्म कहते हैं, ब्रह्म न तो स्त्री है न पुरुष, ये और कुछ नहीं बस एक तत्व है, तत्व माने मूल तत्व, आधार| एक मूल तत्व जिससे सब बना है ओर वे इसे ब्रह्म कहते हैं, जब यह ब्रह्म जब निजी हो जाता है तब इसे शिव तत्व - एक भोला /मासूम देव कहते हैं,और वह ही सब कुछ है, इसलिए ही हम नमो नमो कहते हैं |
पेड़ों में, हरियाली में, चिड़ियों में यहाँ तक कि चोर- डाकू में सब जगह यही एक मूल है |
फिर दूसरे भाग में कहते हैं, 'चमे चमे चमे' आपने सुना है न! इसका अर्थ है "सब कुछ मुझ में ही है" |
अंग्रेजी का me शब्द संस्कृत के मा शब्द से आया है जिसका अर्थ है मेरा| मा मा मायने मेरे लिए, मुझ में, इसलिए सब कुछ मेरे अर्थ में ही है, दूसरे भाग का अर्थ है सब कुछ मेरे लिए है, मेरे ही अर्थ में है| यहाँ तक कि नंबर के लिए भी हम कहते हैं "एकाचमे", जिसका अर्थ है कि १, २, ३, ४, ये सब मेरे ही रूप हैं, ऐसे ही "सुगुमचमे", अर्थात मेरे लिए ख़ुशी !
"अभ्याचमे", अर्थात निडरता, ख़ुशी, स्वास्थ्य, और बाकी ब्रह्माण्ड की सब अच्छी चीज़ें मेरे पास आ जायें ओर वे मेरा ही हिस्सा हैं | बस यह है |
और जब यह सब उच्चारित किया जाता है तब ज़्यादातर दूध एवं पानी को क्रिस्टल पर बूँद बूँद करके डालते हैं| यह एक पुरातन प्रथा है| यह पानी से और आग में भी किया जाता है |
उसके लिए वे अग्नि रखते हैं और अलग अलग मंत्रो के साथ अलग अलग तरह की जड़ी बूटियाँ आग में डालते हैं| और या फिर आप क्रिस्टल पर पानी की एक धार डालते हुए यह मंत्रोच्चारण सुनें – यह प्राचीन तरीका है |
और अगर सोमवार को करते हैं तब और खास हो जाता है, सोमवार चंद्रमा का दिन है और चाँद एवं मस्तिष्क जुड़े हुए हैं| मंत्र, चाँद और मन ये सब कहीं न कहीं जुड़े हुए हैं, इसलिए भारत में सब आश्रम में ये प्रथा है, वहां ये मंत्रोच्चारण होता है, हमारे आश्रम में भी हर सोमवार को यह होता है |
पूजा में सभी ५ तत्व उपयोग किये जाते हैं, पूजा का अर्थ है सभी तत्वों का सत्कार करना, पूजा मायने सभी तत्वों के प्रति पूर्णता से उनका सम्मान करना| इसलिए अग्नि, जल, अगरबत्ती, फल, फूल, चावल, आदि जो भी प्रकृति ने हमें दिया है, उन सब का प्रयोग करते हुए पूजा की जाती है और मंत्रोच्चारण किया जाता है| इसमें बहुत गहराई है और इसका बहुत गहरा अर्थ है, आप जाकर इसपर शोध कर सकते हैं, और अधिक चीज़ें आपके सामने आएँगी |
मुख्य रूप से इस से और अधिक सकारात्मकता उत्पन्न होती है और ऐसा और भी ज्यादा होता है जब लोग ध्यान करते हैं |
सिर्फ एक रीति के जैसे इसे पूरा करना इतना प्रभावशाली नहीं होता क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि वेद-मंत्रो का प्रभाव तब अधिक होता है जब लोग अन्दर से जागृत हो, तब इन मंत्रो का एक अलग अर्थ होता है, इसलिए ये आपको ध्यान में गहरा उतरने में मदद करते हैं |
*रुद्रपुजा में 6 शक्तियो को पूजते हैं*
वो है
*शिव*
*विष्णुनारायण*
*गणपति*
*सूर्यदेवता*
*महादेवी*लक्ष्मी सरसवती और शक्ति
*गुरुतत्व*
*रुद्रपुजा 4दोषो को कम करती है*
*पितृदोष*
*ग्रहदोष*
*वास्तुदोष*
*कर्मदोष*
*तीनों दोषो को संतुलित करती हे।*
*वात*
*पित्त* और
*कफ*
Ji
व्यक्ति और वातावरण में
*सत्व गुण और प्राण शक्ति* बढाती हैं।
🙏🏻 जय गुरुदेव 🙏🏻
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