*Fantastic* Explanation of
Seven Layers of Existence by
Sri Sri:-
प्रश्न : अस्तित्व के इतने स्तरों के बारे में आपने बताया है, कृपया इन पर कुछ और विस्तार कीजिये।
श्री श्री रवि शंकर : मन, बुद्धि, स्मृति और अहंकार मन के ये चार पहलू हैं।
तो, मन क्या है? क्या तुम सुन रहे हो? अगर तुम्हारी आंखें खुली हैं, और कान में तो आवाज़ जाती ही है पर यदि तुम्हारा मन कहीं और है, तो क्या तुम मेरी बात सुन सकोगे? नहीं। है कि नहीं? तो, इस मन से ही तुम महसूस करते हो। ठीक है ना? जो पांचों इन्द्रियों के ज़रिये बाहर जाता है और अनुभव करता है, वो मन है।
अच्छा, अगर तुम मन से अनुभव कर रहे हो तो बुद्धि क्या है? जब तुम अनुभव करते हो, तो कहते हो, ‘ओह! ये अच्छा है। ये अच्छा नहीं है। मुझे ये चाहिये। मुझे वो नहीं चाहिये।’ तुम्हारी बुद्धि तय करती है। ये विवेक शक्ति है। मैं बोल रहा हूं और तुम्हारा मन कह रहा है, ‘ये बात मुझे पसंद नहीं है।’ या, ‘मैं ये बात मानता हूं।’ या, ‘मैं ये बात नहीं मानता।’ तुम अपने भीतर एक वार्तालाप कर रहे हो। ये बुद्धि है।
और फिर, स्मृति वो है जो जानकारियों को संभाल कर रखती है। तो, कभी कभी कोई अनुभव करते हुये तुम्हें लगता है, ‘ओह! मैंने ऐसा अनुभव पहले किया है।’ अगर तुम एक सेब की मिठाई का मज़ा पहले ले चुके हो तो तुम कह उठते हो, ‘ओह! मैं पहले भी इसका मज़ा ले चुका हूं। मैंने ये सेब की मिठाई पहले भी खाई है।’ तो स्मृति का काम है अनुभव को पहचानना और उसे स्मृति में संजो कर रखना।
फिर आया अहंकार। अहंकार है – ‘मैं कुछ हूं। मैं बुद्धिमान हूं। मैं मूर्ख हूं। मुझे ये पसंद है। मुझे वो पसंद नहीं है। मैं अमीर हूं। मैं बहुत ग़रीब हूं। मैं बदसूरत हूं। या, मैं सुंदर हूं। मैं कुछ हूं। मैं हूं,’ ये अहंकार है।
जब तुम अहंकार को जान गये, तो कहोगे कि क्या बस इतना ही है? नहीं! अहंकार को जानने के बाद भी कुछ जानना बाकी है। वो क्या है? वो आत्मा है।
🙏🏻 जय गुरुदेव 🙏
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