*🌸।।। अहंकार का दिया ।।।🌸*
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🌸एक आदमी रात को झोपड़ी में बैठकर एक छोटे से दीये को जलाकर कोई शास्त्र पढ़ रहा था ।
🌸आधी रात बीत गई ।
🌸जब वह थक गया तो फूंक मार कर उसने दीया बुझा दिया ।
🌸लेकिन वह यह देख कर हैरान हो गया कि जब तक दीया जल रहा था, पूर्णिमा का चांद बाहर खड़ा रहा ।
🌸लेकिन जैसे ही दीया बुझ गया तो चांद की किरणें उस कमरे में फैल गई ।
🌸वह आदमी बहुत हैरान हुआ यह देख कर कि एक छोटे से दीए ने इतने बड़े चांद को बाहर रोेक कर रखा था ।
*▶इसी तरह हमने भी अपने जीवन में अहंकार के बहुत छोटे-छोटे दीए जला रखे है जिसके कारण परमात्मा का चांद बाहर ही खड़ा रह जाता है ।*
*🌸आज मनुष्य ने स्वयं को मैं-मैं के अनेक प्रकार के बंधनों और अहंकार की बेड़ियों में बांध रखा है ।*
*🌸यह सब अज्ञान अंधकार और अहंकार ही उसे परमात्मा के समीप नहीं जाने देता ।*
*🌹इसलिए परमात्मा को पाना है तो इस अंधकार से बाहर आना पड़ेगा ।*
*🌸इसलिए अब हमें यही पुरुषार्थ करना है कि हमारे अंदर जितने भी प्रकार के मैं - मैं के दीये जल रहे हैं , जो परमात्मा के प्रकाश की किरणों को भीतर आने से रोक रहे हैं उन्हें बुझाएं ।*
*🙏🏻🌸अपने जीवन को परमात्मा के प्रकाश से भर दें ताकि जीवन में फैला अज्ञान अंधकार समाप्त हो जाए और जीवन खुशियों से भरपूर हो जाये ।*
🙏🏻
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